इस वक्त शिवांगी और मृत्युंजय एक-दूसरे के बेहद करीब खड़े थे। मृत्युंजय का हाथ शिवांगी की कमर पर था, और उनके बीच बस हल्की सी जगह बची थी। वह उसकी गौर-मखमली त्वचा को निहारते हुए कहीं खो गया था। उसकी ओर देखते ही वह बेपरवाह हो गया और धीरे-धीरे अपने होंठ उसकी ओर बढ़ाने लगा।
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