02

R@pe

Ch 2

मृत्युंजय ने अपने कदम आगे बढ़ाए, जहां से उसे बच्ची के रोने की आवाज आ रही थी। लेकिन उसे बच्चा तो नहीं मिला, बल्कि एक लड़की बेहोश मिली, जो पेट के बल गिरी हुई थी। उसके चेहरे को उसके बालों ने ढका हुआ था। संकल्प भी उसके पीछे-पीछे फोन की टॉर्च जलाकर वहां आया।

मृत्युंजय ने धीरे से लड़की को साइड किया तो उसका आधा चेहरा खून से भरा हुआ था, जो शायद सिर पर चोट लगने की वजह से हुआ था। बच्चे के रोने की आवाज अभी भी आ रही थी। संकल्प ने कहा, "मैं बच्चे को देखता हूं, कहां से आ रही है रोने की आवाज?"

मृत्युंजय बोला, "जल्दी देखो, मैं इसे गाड़ी में लेकर जाता हूं। इसका हॉस्पिटल जाना बहुत जरूरी है।"

इसके बाद उसने हल्का सा झुककर लड़की को अपनी गोद में उठाया और गाड़ी की तरफ ले गया। उधर, संकल्प भी झाड़ियों की तरफ जाने लगा, जहां से आवाज और तेज हो गई थी।

जब वह झाड़ी के पास पहुंचा, तो उसने देखा कि एक छोटी-सी बच्ची काफी देर से गला फाड़कर रो रही थी। वह जल्दी से उसकी तरफ बढ़ा और उसे अपनी गोद में ले लिया। गोद में लेने के बाद भी बच्ची ने रोना बंद नहीं किया था। संकल्प ने उसे थपकी देते हुए कहा, "कुछ नहीं हुआ है, कुछ नहीं हुआ है। चलो, आपको आपकी मम्मी के पास लेकर चलते हैं।"

इसके बाद वह बच्ची को लेकर गाड़ी की तरफ आया। बैक सीट पर लड़की को लिटा दिया गया था और मृत्युंजय आगे की सीट पर आ गया था। संकल्प बैक सीट पर बैठा और उसने बच्ची को अपनी गोद में रखा। फिर ड्राइवर से कहा, "हॉस्पिटल चलो!"

ड्राइवर ने बिना कोई सवाल किए गाड़ी को सीधा हॉस्पिटल की तरफ मोड़ दिया।

लगभग डेढ़ घंटे बाद, अस्पताल,

इस वक्त वह लड़की पट्टियों से बंधी हुई थी और कमरे के बिस्तर पर लेटी थी। धीरे-धीरे उसकी पलके झपकने लगीं और उसने अपनी आंखें खोल दीं।

वहीं, सोफे पर संकल्प बैठा हुआ था और अपने फोन पर कोई काम कर रहा था। एकता और योगिता जी को फोन करके बुला लिया गया था।

योगिता जी भी वहीं पर थीं और उनकी गोद में मृत्युंजय का छोटा-सा बच्चा था। साथ में वहां नर्स भी थी, जो ग्लूकोज की बोतल चेक कर रही थी।

तभी हल्की सी आवाज उसके मुंह से निकली, "मेरी बेटी... मेरी बेटी..."

उसकी आवाज सुनकर नर्स ने तुरंत उसकी तरफ देखा और अपना चेहरा उसके करीब लाकर बोली, "जी, आपको कुछ चाहिए? क्या मैं आपके लिए पानी लेकर आऊं?"

नर्स की आवाज सुनकर संकल्प और योगीता जी ने भी ऊपर देखा। संकल्प खड़े होते हुए बोला, "यह होश में आ गई?"

नर्स ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "जी, होश में आ गई है।"

योगिता जी आगे आईं। लड़की ने अपना हाथ हल्का सा ऊपर उठाते हुए छोटे बच्चे की तरफ इशारा किया और बोली, "मेरी बेटी..."

योगिता जी ने अपने हाथ में लिए बच्चे को देखा और फिर लड़की की तरफ देखा, जो शायद मृत्युंजय के बच्चे को अपना बच्चा समझ रही थी। इस वक्त उसकी असली बच्ची एकता के पास थी, जो उसे बाहर ताजी हवा में घुमाने के लिए ले गई थी, क्योंकि डॉक्टर ने कहा था कि फिलहाल बच्चे को फ्रेश एयर की जरूरत है। इसलिए एकता उसे लेकर बाहर चली गई थी।

योगिता जी ने कहा, "पानी पीना है?"

लड़की ने अपना सिर हल्का सा हिलाया और बच्चों की तरफ उंगली उठाए हुए ही बोली, "मेरी बेटी…, मुझे दो…! मुझे मेरी बेटी दो... मैं हमेशा के लिए दूर चली जाऊंगी। प्लीज, मुझे मेरी बेटी से दूर मत करो... मैं मर जाऊंगी उसके बिना... मुझे मेरी बेटी दो!"

योगिता जी उसकी दर्दभरी आवाज सुनकर उस पर तरस खाते हुए बोलीं, "हाँ, तुम्हें तुम्हारी बेटी दे देंगे, लेकिन पहले खड़ी तो हो जाओ।"

इसके बाद उन्होंने नर्स की मदद से उसे हल्का सा सहारा देकर खड़ा किया। लड़की ने फिर गुहार लगाई, "प्लीज, मुझे मेरी बेटी दे दीजिए!"

योगिता जी ने बच्चे को देखते हुए कहा, "यह तुम्हारी नहीं है।"

लड़की ने तुरंत जवाब दिया, "मेरा... यह मेरी बेटी है!"

संकल्प इस पर बोला, "देखिए, यह आपकी बेटी नहीं है। यह मेरा भतीजा है।"

लड़की ने संकल्प की तरफ देखते हुए घबराए स्वर में कहा, "मेरी बेटी कहाँ है?"

इसके बाद वह इधर-उधर देखने लगी। पूरे बड़े कमरे में उसकी बेटी कहीं नजर नहीं आई। वह बेचैनी से ढूँढते हुए बोली, "तनुजा... तनुजा..."

ठीक उसी वक्त मृत्युंजय डॉक्टर के साथ कमरे में दाखिल हुआ। जैसे ही उसने लड़की के मुंह से "तनुजा" नाम सुना, उसके कदम कुछ पल के लिए रुक गए। वह लड़की को देखते हुए कहीं खो गया। उसके कानों में कुछ शब्द गूंजने लगे और उसकी आँखों के सामने कुछ दृश्य झलकने लगे—

वह एक लड़की के साथ बैठा हुआ था। लड़की ने उसकी बाजू में अपनी बाहें डाल रखी थीं। वह बोली, "विलेन, तुम्हें पता है, अगर मेरी बेटी हुई न, तो मैं उसका नाम तनुजा रखूँगी।"

मृत्युंजय उसके साथ बैठा हुआ था। वह बोला, "लेकिन क्यों? तुम्हें तनुजा नाम क्यों पसंद है, आदत?"

आदत ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "क्योंकि हम दोनों ही उसके नाम के मतलब की तरह नहीं हैं। तुम्हें पता है, तनुजा का मतलब होता है 'काइंडनेस' (दयालुता), और मैं चाहती हूँ कि अगर हमारी बेटी हुई, तो वह बहुत ज्यादा काइंड हो... हम दोनों की तरह न हो।"

मृत्युंजय ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "और अगर बेटा हुआ तो?"

आदत ने उसकी बाजू छोड़कर उसका चेहरा पकड़ते हुए कहा, "मुझे इतना पता है कि अगर बेटा हुआ, तो वह बिल्कुल तुम्हारी तरह निकलेगा। इसीलिए उसका नाम तुम डिसाइड करोगे, मैं नहीं।"

मृत्युंजय उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुराया और उसे अपनी बाहों में भर लिया।

अचानक एक बच्ची के रोने की आवाज से मृत्युंजय की तंद्रा टूटी। उसने देखा कि एकता कमरे के अंदर दाखिल हो रही थी, गोद में एक छोटी-सी बच्ची थी। जैसे ही लड़की की नजर उस पर पड़ी, वह तुरंत खड़े होने की कोशिश करने लगी और कमजोर आवाज में बोली, "तनुजा..."

लेकिन वह खड़ी नहीं हो पा रही थी। उसके पूरे बदन पर पट्टियाँ बंधी थीं, और उसकी हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह चल सके। उसे किसी के सहारे की जरूरत थी।

योगिता जी जल्दी से आगे बढ़ीं, लेकिन उनके हाथ में पहले से ही बच्चा था, इसलिए वे लड़की को संभाल नहीं पाईं।

लड़की किसी तरह खुद को खड़ा करके बच्ची की तरफ बढ़ने लगी। उसने धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ाए, लेकिन दो कदम चलते ही उसका सिर तेजी से घूमने लगा। इसके बावजूद वह आगे बढ़ रही थी।

लेकिन इससे पहले कि वह अपने हाथ बढ़ाकर अपनी बेटी को एकता से ले पाती, उसका सिर पूरी तरह झन्ना गया, और वह संतुलन खोते हुए एक तरफ गिरने लगी।

पर मृत्युंजय ने तेजी से आकर उसे अपनी बाहों में संभाल लिया। फिर उसने उसे जल्दी से गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया।

डॉक्टर जल्दी से आए और उसका चेकअप करने लगे। एकता उसकी बेटी को लेकर उसके पास आई। डॉक्टर ने लड़की को देखते हुए कहा, "अभी यह ठीक है?"

एकता ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ यह देखिए, बिल्कुल ठीक है और बहुत खुश भी है।"

इसके बाद एकता बच्ची को देखकर हल्की मुस्कान देने लगी। बच्ची भी खिलखिलाकर हंस रही थी, जैसे उसे कोई जीने की नई वजह मिल गई हो।

डॉक्टर ने लड़की का अच्छे से चेकअप किया और कहा, "पाँच मिनट में होश आ जाएगा। लेकिन इनका अच्छे से ध्यान रखना होगा, क्योंकि ये अभी चलने-फिरने की हालत में बिल्कुल भी नहीं हैं।"

योगिता जी ने तुरंत जवाब दिया, "हम इनका पूरा ध्यान रखेंगे, डॉक्टर।"

डॉक्टर उनकी बात सुनकर नर्स के साथ वहाँ से चले गए।

पाँच मिनट बाद, 

लड़की को होश आ गया। उसने धीमी आवाज में बड़बड़ाया, "तनुजा... तनुजा..."

एकता उसके पास खड़ी थी। उसने हल्की आवाज में कहा, "आप आराम से बैठ जाइए, मैं आपको आपकी बेटी दे रही हूँ।"

लड़की ने अपनी बेटी को प्यार से अपने पास ले लिया और उसे गहरी नजरों से देखने लगी। जब-जब वह अपनी बेटी का नाम पुकारती, मृत्युंजय की नजर कभी लड़की पर जाती, तो कभी उस बच्ची पर।

एकता ने कहा, "थोड़ी देर बाद आप मुझे इसे वापस दे देना, क्योंकि डॉक्टर ने कहा है कि एक बार इनका बॉडी चेकअप करना ज़रूरी है, यह देखने के लिए कि कहीं कोई और चोट तो नहीं लगी।"

लड़की ने तुरंत जवाब दिया, "नहीं, मैं इसे नहीं दूँगी! मुझे कुछ नहीं करना, और मुझे यहाँ से जाना है। थैंक यू सो मच मुझे यहाँ लाने के लिए।"

इसके बाद उसने अपनी नजरें नीचे कर लीं।

योगिता जी ने मृत्युंजय के बच्चे को एकता के हाथ में दिया और फिर लड़की के पास आकर उसका चेहरा हल्के हाथों से थामते हुए पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

लड़की ने अपनी नजरें झुकाए हुए ही धीमे स्वर में कहा, "शिवांगी।"

योगिता जी ने अगला सवाल किया, "और तुम्हारी उम्र क्या है?"

शिवांगी ने धीरे से जवाब दिया, "उन्नीस।"

योगिता जी उसके जवाब पर बिल्कुल हैरान रह गईं। उन्हें लगा था कि शायद उसकी शक्ल ही मासूम और बच्चियों जैसी है, लेकिन वह सच में बहुत छोटी थी। वे आश्चर्य से बोलीं, "तुम सिर्फ उन्नीस साल की हो?"

शिवांगी ने हल्के से सिर हिलाया। उसकी आँखों से आँसू गिरकर उसकी बच्ची के चेहरे पर टपकने लगे। वह जल्दी से अपने हाथों से अपनी बेटी के चेहरे से आँसू पोंछने लगी। उसकी बेटी उसकी गोद में आते ही चैन से सो गई थी।

योगिता जी ने कुछ देर उसे देखते रहने के बाद पूछा, "तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारी इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी? और अगर कर दी, तो बच्चे के लिए इतनी जल्दी क्यों फैसला लिया?"

शिवांगी ने बिना आँखें उठाए धीमी आवाज में कहा, "मेरी शादी नहीं हुई है।"

उसकी बात सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। सब हैरान रह गए।

योगिता जी ने चौंकते हुए कहा, "क्या मतलब? अगर शादी नहीं हुई, तो यह बच्चा...?"

उनकी बात सुनते ही शिवांगी ने तुरंत अपनी बच्ची को मजबूती से अपनी बाँहों में भींच लिया और घबराए हुए स्वर में बोली, "यह मेरी है! यह सिर्फ मेरी है! मैं किसी को नहीं दूँगी... मैं किसी को नहीं दूँगी... यह सिर्फ मेरी है... मैं किसी को नहीं दूँगी! मैं चली जाऊँगी सबकी ज़िंदगी से! मैं किसी की ज़िंदगी में नहीं आऊँगी! पर मैं इसे किसी को नहीं दूँगी... यह मेरी है, सिर्फ मेरी!"

शिवांगी पैनिक करने लगी।

योगिता जी ने तुरंत उसे शांत करने की कोशिश की और कहा, "ठीक है... ठीक है... मान लिया, यह तुम्हारी है।"

फिर उन्होंने धीमे स्वर में पूछा, "तुम्हारे पति कहाँ हैं? तुम्हारे माता-पिता और तुम्हारे ससुराल वाले कहाँ हैं? और तुम जंगल में भाग क्यों रही थी?" उन्हें लगा कि शायद शादी वाली बात पर वह झूठ बोल रही है, डर की वजह से। 

जब योगिता जी वहाँ आईं, तो संकल्प ने उन्हें एक्सीडेंट के बारे में बता दिया था।

शिवांगी ने धीरे से कहा, "मेरे पति मर गए... मैं जब प्रेग्नेंट थी, उसके दो-ढाई महीने बाद ही उनका निधन हो गया।"

उसकी बात सुनकर योगिता जी के दिल में कुछ टूट सा गया। उनके दिमाग में पुरानी यादें उभरने लगीं, जैसे कोई बीती हुई बात उनके दिल को चीर रही हो। लेकिन उन्होंने उन विचारों को झटका और खुद को वर्तमान में लाकर पूछा, "और तुम्हारे ससुराल वाले?"

शिवांगी ने उनकी ओर देखते हुए हाथ जोड़ लिए और गिड़गिड़ाई, "प्लीज, मुझे उनके पास मत भेजिए... वे मुझे फिर से बेच देंगे! मेरी बेटी को मुझसे दूर कर देंगे! मुझे कहीं नहीं जाना, मुझे सिर्फ अपनी बेटी के साथ रहना है... प्लीज, मुझे उनके पास मत भेजिए!"

योगिता जी का चेहरा सख्त हो गया। उन्होंने गंभीर स्वर में पूछा, "बेच देंगे? मतलब?"

शिवांगी रोते हुए बोली, "उनका कहना है कि मैं उनके घर के लिए अच्छी नहीं हूँ, इसलिए उन्होंने मुझे एक डीलर के बेटे को बेचने का फैसला कर लिया। और मेरी बेटी... वे उसे मुझसे दूर करना चाहते थे, उसे अनाथालय भेज रहे थे! मेरी बच्ची की माँ होते हुए भी वे उसे अनाथ बनाने पर तुले थे! कैसे मैं अपनी बेटी को अनाथालय जाने दूँ? यह मेरी बेटी है! मैं उसे किसी को नहीं दूँगी!"

उसकी आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे।

एकता ने चौंककर पूछा, "पर वे आपसे आपकी बेटी को दूर क्यों करना चाहते हैं? और वे आपको जबरदस्ती दूसरी शादी के लिए क्यों मजबूर कर रहे हैं, अगर आप तैयार नहीं हैं?"

शिवांगी ने धीरे से जवाब दिया, "क्योंकि मेरी बेटी उनके घर की असली बेटी नहीं है..."

योगिता जी उसके शब्दों को पूरी तरह समझ नहीं पाईं। उन्होंने सवाल किया, "क्या मतलब?"

शिवांगी ने हल्के-हल्के हिचकते हुए कहा, "मेरी बेटी मेरे पति की संतान नहीं है।"

एकता ने झट से पूछा, "तो क्या आपका कोई बॉयफ्रेंड था? उसकी बेटी है?"

शिवांगी ने अपना सिर ना में हिला दिया।

एकता ने फिर सवाल किया, "तो फिर क्या यह आपकी दूसरी शादी थी?"

शिवांगी ने फिर सिर हिला दिया। वह बार-बार 'ना' कर रही थी।

मृत्युंजय, जो अब तक चुप था, अचानक गुस्से से बोल उठा, "अगर तुम्हारी दूसरी शादी नहीं हुई, और यह तुम्हारे पति की भी नहीं है, तो फिर किसकी है?"

शिवांगी उसके गुस्से से तिलमिला गई। उसकी आँखों में डर उतर आया। वह घबराकर पीछे हटने लगी।

योगिता जी ने मृत्युंजय को घूरा और सख्त लहजे में कहा, "शांत हो जाओ!"

फिर उन्होंने नरम स्वर में शिवांगी की ओर देखा और पूछा, "बेटा, यह किसकी बेटी है? कहीं किसी और की तो नहीं...? तुमने किसी का बच्चा तो नहीं चुराया?"

शिवांगी की आँखों में आंसू और भी तेज़ी से उमड़ आए। उसने कांपती आवाज़ में कहा, "मैंने कहा ना, यह सिर्फ मेरी है... मेरी! मेरी क्या गलती थी? न मैंने छोटे कपड़े पहने थे, न मैंने किसी लड़के को अपनी ओर बुलाया था... मैं तो बस एक अंधेरी रात में अपने घर जा रही थी... बस! फिर कुछ लड़के आए, मेरे सर पर पर वार कर मुझे बेहोश कर दिया। अगले दिन होश में आई तो मे हॉस्पिटल में थी।"

उसकी आवाज़ रुंध गई। वह कुछ पल चुप रही, फिर कांपते हाथों से अपने पैरों के बीच उंगली से इशारा किया और डरते हुए उस दिन की रात को याद करते हुए, कांपती हुई आवाज में बोली, “काफी दिनों तक यहाँ दर्द था।”

कमरे में मौजूद हर किसी की साँसे थम गईं।

उसके इशारे ने सबकुछ साफ कर दिया था।

कोई शब्द नहीं बोले गए, लेकिन सब समझ गए।

अंधेरी रात में... उसका फायदा उठाया गया था।

और यह कोई और नहीं, बल्कि वही वहशी थे... जिन्होंने उसे अधमरी हालत में छोड़ दिया था।

उसके साथ बलात्कार हुआ था।

और उसे अब तक नहीं पता था कि कितने लोग थे... कितनी बार हुआ... बस उसे इतना याद था कि वह बेहोश हो गई थी, और जब होश आया, तो वह अस्पताल में थी।

आखिर कौन थी वैसे जिन्होंने शिवांगी के साथ इतना गलत किया? क्या मृत्युंजय शिवांगी के साथ गलत हुए का बदला ले पाएगा? आखिर कैसे किस्मत शिवांगी को मृत्युंजय की जिंदगी में भेज देगी? क्या दोनों बच्चों को एक साथ मां-बाप का प्यार मिलेगा?

‎Follow the Sneha’s pen 🖊️ club 🧿🧿🧿🧿 channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHL8t08kyyNEcPiC73Y

Write a comment ...

Sneha Chauhan

Show your support

Want to entertain you with my dark books

Write a comment ...