श्मशान घाट पर एक चिता जल रही थी, जिसे वहाँ मौजूद लोग बिना पलक झपकाए देख रहे थे। और उन्होंने सफेद रंग के कपड़े पहने हुए थे। लेकिन वहाँ एक आदमी सबसे अलग नज़र आ रहा था, क्योंकि उसने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे। उसकी नज़र बस चिता पर ही टिकी हुई थी। उसकी गहरी काली आँखों में सिर्फ एक ही चीज़ नज़र आ रही थी, बदले की भावना। जो धीरे-धीरे ज्वालामुखी का रूप लेने वाली थी।
वह आदमी करीब छह फुट लंबा था। उसके अच्छे-खासे लंबे बाल थे, जिन्हें उसने रबर बैंड से बाँध रखा था। उसकी बाईं भौं हल्की-सी एक जगह से कटी हुई थी, और उसके बाएँ कान में एक छोटी-सी बाली थी, जो उसे काफी ज्यादा इंटेंस और डेंजरस लुक दे रही थी। चारों ओर अंधेरा था, सिर्फ चिता की रोशनी थी, जिसकी वजह से उसका चेहरा पूरी तरह से नहीं दिख रहा था। लेकिन फिर भी, उसकी मौजूदगी ही लोगों को डराने के लिए काफी थी।
धीरे-धीरे चिता ठंडी हो रही थी, और लोग वहाँ से जाने लगे। तभी एक लड़का आगे बढ़ते हुए उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, “भाई, हमें चलना चाहिए। आप गाड़ी में बैठिए, मैं भाभी की अस्थियाँ…”
लेकिन इससे पहले कि वह लड़का अपनी बात पूरी कर पाता, काले रंग के कपड़े पहने हुए आदमी ने उसका हाथ झटकते हुए कहा, “मैं खुद लेकर आऊँगा।”
इसके बाद उसने धीरे-धीरे ठंडी पड़ती चिता की तरफ कदम बढ़ाए। अभी तक आग पूरी तरह बुझी नहीं थी, और जैसे-जैसे उसके कदम चिता की ओर बढ़ रहे थे, उसका चेहरा धीरे-धीरे साफ होता जा रहा था। उसका चेहरा बिल्कुल परफेक्ट था, जैसे किसी ग्रीक गॉड का। उसके हार्ड लिप्स हल्की हवा के कारण थोड़े फड़फड़ा रहे थे।
वह लड़का, भी धीरे-धीरे आगे आया और कलश उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, “लीजिए।”
उस आदमी ने बिना उसकी ओर देखे अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस लेते हुए कहा, “मैंने कहा ना, जा यहाँ से।”
लड़के ने कहा, “नहीं, आपको छोड़कर नहीं जाऊँगा। मैं जानता हूँ कि आप बहुत गुस्से में हैं, और आपका गुस्सा कितना भयानक रूप ले सकता है, यह भी बहुत अच्छे से जानता हूँ। और अब, उस गुस्से को शांत करने वाली इस दुनिया में नहीं है…”
जैसे ही यह शब्द लड़के ने कहे, उस आदमी ने जोर से उसके सीने पर हाथ रखकर उसे दूर धक्का दे दिया। वह सीधा रेत पर जा गिरा। ये था संकल्प अग्निवेश! भाई की परछाई!
लड़के ने धीरे अपनी नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा। उसका चेहरा अब साफ़ दिख रहा था। दोनों के बीच ज्यादा से ज्यादा तीन-चार साल का उम्र का अंतर था। तभी वहाँ दो आदमी आ गए, जिन्होंने बॉडीगार्ड सूट पहना हुआ था। उन्होंने अपने हाथ पीछे बाँधते हुए कहा, “मृत्यंजय सर।”
वह आदमी, जिसका नाम मृत्यंजय अग्निवेश था, जिसकी उम्र 30 साल थी, उसने हल्की-सी नज़र पीछे घुमाई। फिर कलश, जो हल्का सा टेढ़ा होकर नीचे गिर गया था, उठाया और अस्थियाँ भरते हुए बोला, “बोलो?”
उन दोनों बॉडीगार्ड में से एक ने कहा, “जश्न ओबेरॉय गोवा चला गया है। हमने अपने कुछ आदमियों को गोवा भेज दिया है। जैसे ही उसकी लोकेशन का पता चलेगा, आपको इंफॉर्म करेंगे।”
मृत्यंजय ने अस्थियाँ अच्छे से कलश में भरीं और खड़े होते हुए अपने भाई संकल्प अग्निवेश की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, “और जब तक लोकेशन ना पता चल जाए, मेरे पास मत आना, वरना जान ले लूँगा।”
संकल्प ने अपना दूसरा हाथ ऊपर उठाया और मृत्यंजय के हाथ में दे दिया। फिर झटके से खड़ा हो गया।
संकल्प ने कहा, “आप कहो तो मैं चला जाऊँ?”
मृत्यंजय ने ठंडी आवाज़ में कहा, “नहीं, तेरा घर पर रहना बहुत जरूरी है।”
संकल्प ने अपना सिर हिलाया और कहा, “घर चलिए, घर पर एकता और माँ हमारा इंतज़ार कर रही हैं।”
मृत्यंजय ने कुछ नहीं कहा, बस अपने कदम गाड़ी की तरफ बढ़ा दिए, और कुछ ही पलों में गाड़ी हवा से बातें करने लगी।
वहीं दूसरी तरफ…,
मुंबई के ठीक बीचों-बीच एक बड़ा मेंशन था। फाउंटेन से लगातार पानी बरस रहा था, और उसी तरह घर के अंदर मौजूद हर इंसान की आँखों से भी आँसू बह रहे थे।
सोफे पर एक उम्रदराज़, लगभग 50 साल की महिला बैठी थी, जिनकी आँखों से भी आँसू झर-झर बह रहे थे। उनके पास, ज़मीन पर घुटनों के बल बैठी एक लड़की थी, जिसकी उम्र लगभग 23 साल के आसपास थी। वह भी हल्के-हल्के सुबक रही थी।
सामने टेबल पर एक लड़की की तस्वीर रखी थी, जिस पर माला चढ़ाई गई थी। वहाँ मौजूद लोग कुछ नहीं बोल रहे थे, शायद उनकी ज़ुबान से किसी ने शब्द छीन लिए थे। वे बस उस तस्वीर को देखकर रोते जा रहे थे।
तभी अचानक से एक नौकरानी आई और बोली, “दीदी, बाबा बहुत रो रहे हैं, प्लीज़ उन्हें संभाल लीजिए।”
नौकरानी की गोद में एक छोटा सा बच्चा था, जिसे वह हल्की-हल्की थपकी दे रही थी, लेकिन न जाने क्या बात थी इस बच्चे में…, जन्म से ही उसका रोना बंद नहीं हुआ था।
उस उम्रदराज़ महिला ने धीरे से सिर उठाया, बच्चे को देखा और कहा, “मुझे दो…, और उसके लिए दूध गर्म करो।”
नौकरानी ने तुरंत बच्चे को उनकी गोद में दे दिया। लड़की ने अपना सिर झुका लिया, ताकि वह आराम से बच्चे को अपनी गोद में रख सकें।
उस महिला ने बच्चे को गोद में लेकर हल्के से उसका चेहरा और शरीर सहलाते हुए कहा, “इतनी बुरी किस्मत है ना तेरी…, इतनी गंदी तक़दीर भगवान किसी को भी न दे…, तू इस दुनिया में आया, और उसने अपनी माँ को छीन लिया…, तूने अपनी माँ को देखा तक नहीं…, महसूस तक नहीं किया…, भगवान इतना निर्दयी हो सकता है, यह मैंने कभी सोचा भी नहीं था…!”
वह लड़की, जो उनकी बेटी थी, घबराई और बोली, “प्लीज़, मत रोइए! आप इस तरह रोएँगी, तो यह और रोएगा…, वैसे ही चुप नहीं हो रहा है जब से भाभी गई हैं…!”
उस महिला, योगिता अग्निवेश, जो मृत्युंजय अग्निवेश की माँ थीं, ने अपने चेहरे से आँसू पोंछते हुए कहा, “अभी तो हम रो रहे हैं, एकता…, लेकिन बहुत जल्द वह रोएगा…, जिसकी वजह से मैंने अपनी बेटी को खो दिया…! कितने प्यार से दुल्हन बनाकर उसे इस घर में लाए थे…, कितनी मुश्किलों के बाद मेरे बेटे को कोई प्यार करने वाली मिली थी…, इतनी बुराइयों के बावजूद कोई लड़की उसे अपनाने के लिए तैयार हुई थी…, और एक ही पल में मेरे बेटे की ज़िंदगी से सारी खुशियाँ छीन ली गईं…, इस छोटे से बच्चे से उसकी माँ को छीन लिया गया…!”
योगिता की आँखों में आँसुओं के साथ-साथ नफ़रत की चिंगारी भी जल रही थी। उनकी आवाज़ भारी हो गई थी, लेकिन वह रुकी नहीं।
“अगर बद्दुआ सच में होती है ना, एकता, तो मैं उसे बद्दुआ देती हूँ…! जिस तरह यह बच्चा अपनी माँ के लिए तरस रहा है, जिस तरह मेरा मृत्युंजय अपने प्यार के लिए तड़प रहा है…, उसे भी उसकी ज़िंदगी के सबसे अनमोल रिश्तों के लिए तरसना पड़े…, मृत्युंजय को तन्हाई में धकेल दिया गया है…, लेकिन वो आदमी, वह जश्न ओबेरॉय…, वह खून के आँसू रोएगा…! उसका प्यार, उसका परिवार…, सब नष्ट हो जाएगा…! कुछ नहीं मिलेगा उसे…, कुछ नहीं…! और जब मौत उसकी आँखों के सामने खड़ी होगी, तो उसे वह मौत भी नसीब नहीं होगी…, यह मेरी बद्दुआ है…!”
वही दूसरी ओर,
अंधेरी रात थी…, सन्नाटे को चीरती हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज़ गूंज रही थी। एक लड़की नंगे पैर, अपनी गोद में एक छोटे से बच्चे को लिए सड़क पर भाग रही थी। अंधेरा इतना गहरा था कि उसकी शक्ल साफ़ नहीं दिख रही थी, लेकिन उसकी हड़बड़ाहट, उसकी तेज़ चलती सांसें और बेबस भागते कदम बता रहे थे कि वह किसी से बचकर भाग रही थी।
यह जंगल का रास्ता था, और वहाँ घना अंधेरा था। हर कदम पर झाड़ियों की सरसराहट और जंगली कीड़ों की आवाज़ें माहौल को और डरावना बना रही थीं। उसके पैरों में बंधी पायल उसकी तेज़ चाल के साथ छनक रही थी, मानो उसकी मौजदगी का ऐलान कर रही हो। वह पूरी ताकत से भागने की कोशिश कर रही थी, लेकिन तभी,
"आह!"
उसका पैर अचानक ज़मीन पर पड़े नुकीले कंकड़ पर पड़ा, जिससे उसका संतुलन बिगड़ गया। वह गिरने ही वाली थी, लेकिन गोद में मौजूद बच्चे को चोट न लगे, इस डर से उसने अपने शरीर को मोड़ा और पूरी ताकत से खुद को घुमा लिया। "धड़ाम!" वह सीधा ज़मीन पर गिर पड़ी।
"ऊह्ह...!" दर्द से उसकी चीख निकल गई।
नीचे ज़मीन पर नुकीले पत्थर और कंकड़ थे, जो उसकी पीठ में चुभ गए। लेकिन उसकी गोद में मौजूद बच्चा पूरी तरह सुरक्षित था। हालांकि, जैसे ही लड़की ज़मीन पर गिरी, बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
लड़की ने अपनी हथेली ज़मीन पर टिकाई, लेकिन वहाँ भी छोटे-छोटे पत्थर चुभ गए, जिससे उसकी हथेली में खून की हल्की बूंदें उभर आईं। उसने दर्द को अनदेखा करते हुए खुद को संभाला और खड़े होने की कोशिश की, लेकिन…,
जैसे ही उसने अपना भार एक पैर पर डाला, उसे महसूस हुआ कि गिरते वक़्त उसका टखना मुड़ गया था। उसे चलने में तकलीफ हो रही थी, तो भागना तो नामुमकिन था।
पीछे से कुछ आवाज़ें आने लगीं। कई लोगों के दौड़ते कदमों की हलचल साफ़ सुनाई दे रही थी। वह जानती थी कि वे लोग उसके पीछे ही थे। वह ज़्यादा दूर नहीं भाग सकती थी, इसलिए उसने एक झाड़ी के पीछे छुपने का फैसला किया।
जंगल, और भी ज़्यादा अंधेरा था। वह एक बड़े पेड़ के पीछे जाकर दुबक गई, अपने बच्चे को एक हाथ से कसकर पकड़े हुए और दूसरे हाथ से अपनी तेज़ चलती सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगी। वह नहीं चाहती थी कि उसकी पायल की आवाज़ या उसकी सांसें भी उन लोगों तक पहुंचे।
कुछ ही सेकंड बाद,
करीब 7-8 आदमी, अपने हाथों में डंडे लिए, वहाँ पहुँच गए। वे इधर-उधर देख रहे थे, लेकिन अंधेरे की वजह से लड़की को नहीं देख सके।
"कहाँ गई साली*?" एक आदमी झुंझलाते हुए बोला।
दूसरा आदमी चिढ़कर बोला, "यहीं कहीं होगी! जंगल में देखना पड़ेगा…, अभी कुछ ही देर पहले हमारे सामने थी…, वो ट्रक आया और फिर अचानक गायब हो गई!"
तीसरा आदमी गुस्से से बोला, "कहीं वो ट्रक वाले के साथ तो नहीं भाग गई?"
पहला आदमी हंसते हुए बोला, "इस लड़की की फितरत ही ऐसी है! किसी आदमी की तो हो नहीं सकती थी, न जाने किसके साथ मुँह काला करवाया था और अब उसकी औलाद को लेकर भाग रही है!"
लड़की ने अपने हाथों में पकड़े बच्चे को और कसकर थाम लिया। आँसू उसकी आँखों में तैरने लगे, लेकिन उसने होंठ भींच लिए। वह जानती थी, अगर वह ज़रा भी हिली या आवाज़ हुई, तो वे लोग उसे पकड़ लेंगे।
"बस ये लड़की मेरे हाथ लग जाए…" वह आदमी ज़ोर से बोला और फिर गुर्राया, "तो शादी तो करनी ही पड़ेगी इसे…, ऐसे कैसे भागेगी?"
लड़की की आँखों में खौफ तैर गया। उसके हाथ काँपने लगे। वह जानती थी कि अगर वे लोग उसे पकड़ लेते, तो यह रात उसकी ज़िंदगी की आखिरी रात बन जाती…!
आख़िरकार, वे लोग आगे बढ़ गए, और लड़की अपनी जगह जड़ होकर बैठी रही…!
लड़की अभी भी वहीं खड़ी थी, लेकिन अब उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। धीरे-धीरे उसने पास खड़े पेड़ का सहारा लिया और नीचे बैठने लगी। पेड़ की हल्की नुकीली छाल उसकी कमर से रगड़ खा रही थी, जिससे उसकी पहले से घायल कमर से और भी खून निकलने लगा।
वह थक चुकी थी। उसके हाथ, उसकी कमर, उसके पैर… हर जगह से खून रिस रहा था। आँखों के आगे हल्का-हल्का अंधेरा छाने लगा, जैसे वह न जाने कितने घंटों से भाग रही हो।
"ऊं...आँ...!" उसकी गोद में मौजूद बच्ची ने रोना शुरू कर दिया।
लड़की ने उसे हल्के हाथों से थपकते हुए फुसफुसाकर कहा, "नहीं बेटा, प्लीज़ मत रो…, वरना हम दोनों मारे जाएँगे…, मुझे शादी नहीं करनी! मैं तेरी और अपनी ज़िंदगी इतनी सस्ती नहीं बना सकती। भीख माँग लूँगी…, लेकिन ऐसे इंसान के साथ शादी नहीं करूँगी!"
उसकी हालत बेहद नाज़ुक थी। वह अपने आँसू रोक नहीं पाई।
उसने अपनी कमर को सहलाया, जहाँ से अब भी खून बह रहा था। दर्द उसकी नसों में फैल रहा था, लेकिन वह हारी नहीं। बच्ची उसकी बातों को जैसे समझ रही थी, क्योंकि वह धीरे-धीरे शांत होने लगी।
कुछ देर यूँ ही बैठी रहने के बाद, उसने ज़मीन पर हाथ रखकर खुद को उठाने की कोशिश की। उसके हाथ काँप रहे थे, घुटने लड़खड़ा रहे थे, लेकिन उसने ज़मीन पर दबी उँगलियों को और ज़ोर से दबाया और हिम्मत जुटाकर खड़ी हो गई।
जैसे ही वह खड़ी हुई, उसकी नज़र अपने पैरों में बंधी पायल पर पड़ी। उसकी पायल ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन रही थी। हवा जब भी चलती, उसकी पायल की आवाज़ सन्नाटे में गूँज उठती, जैसे दुश्मनों को बुलावा दे रही हो।
"आपका दिया हुआ तोहफ़ा मैं कभी खुद से दूर नहीं करना चाहती," उसने अंधेरे में अपनी पायल को देखते हुए कहा, "लेकिन फिलहाल, यही तोहफ़ा मेरी जान पर बन आया है।"
उसने झुककर अपनी पायलें उतारीं, लेकिन जब उसने उन्हें हाथ में पकड़ा, तो वे तब भी खनक रही थीं। उसने इधर-उधर देखा और फिर बच्ची के कपड़ों पर नज़र पड़ी। बच्ची ने जो कपड़े पहने थे, उनमें एक छोटी लेकिन गहरी जेब थी।
उसने फौरन पायल को उस जेब में डाल दिया और धीरे से बोली, "थोड़ा सा दर्द होगा बेटा, लेकिन सह लेना…, प्लीज़! जो दर्द ये लोग हमें देना चाहते हैं, उसके आगे यह कुछ भी नहीं। आई प्रॉमिस, मैं बाद में दवा लगा दूँगी।"
इसके बाद, उसने अपने क़दमों को जंगल के बाहर की ओर बढ़ाया।
5 मिनट बाद—,
वह जंगल पार कर चुकी थी और सड़क पर आ खड़ी हुई थी। चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। समय का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था, लेकिन शायद रात के 10 बजे के आसपास का वक़्त रहा होगा।
वह नंगे पैर थी…। सड़क पर इधर-उधर देख रही थी…, इस उम्मीद में कि शायद कोई उसे मदद के लिए मिल जाए। लेकिन…,
इस दुनिया से उसे अब कोई उम्मीद नहीं थी।
फिर भी, उसका दिल उम्मीद के सहारे इधर-उधर देख रहा था। इस बात से अनजान कि अंधेरे में मददगार नहीं मिलते…, अंधेरे में भेड़िए मिलते हैं…, भूखे भेड़िए…! जो शिकार करना जानते हैं…, मदद करना नहीं।
वहीं दूसरी तरफ, अंजनी रोड पर एक गाड़ी चल रही थी। ड्राइवर गाड़ी चला रहा था और पीछे मृत्युंजय और संकल्प बैठे थे। संकल्प ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं, जबकि मृत्युंजय बाहर की ओर देखते हुए अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था।
उसके दिमाग में न जाने क्या चल रहा था। देख तो वह बाहर के अंधेरे को रहा था, लेकिन उसकी आँखों के सामने एक लड़की का खूबसूरत चेहरा था। वही चेहरा, जिसे योगिता जी अपनी टेबल पर रखी तस्वीर में देख रही थीं। यह आदत थी…, मृत्युंजय की पत्नी, जो अब इस दुनिया में नहीं थी। मृत्युंजय की दुश्मनी के चलते आदत ने अपनी जान गँवा दी। लेकिन जाने से पहले, वह एक नन्हीं सी जान मृत्युंजय के हाथों में देकर गई, मृत्युंजय का अंश, उसका बेटा।
शायद वह बच्चा नसीबदार था, जो इतनी गहरी चोट के बावजूद भी इस दुनिया में आ गया…, और शायद बदनसीब भी, क्योंकि आते ही उसने अपनी माँ को खो दिया।
मृत्युंजय अपने ख्यालों में डूबा था, तभी अचानक ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया। संकल्प की भी नींद एकदम से टूट गई। उसने ड्राइवर को घूरते हुए पूछा, “गाड़ी क्यों रोकी?”
ड्राइवर की आँखों में डर था, उसका चेहरा पसीने से भीग चुका था, जबकि गाड़ी के अंदर ऐ.सी. की ठंडक थी। संकल्प ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए गहरी आवाज़ में दोहराया, “गाड़ी क्यों रोकी?”
ड्राइवर ने धीरे-धीरे अपनी नज़रें पीछे घुमाईं और काँपती आवाज़ में बोला, “स…साहब, एक लड़की… गाड़ी के सामने आ गई थी।”
संकल्प की आँखें यह सुनते ही चौड़ी हो गईं। इससे पहले कि वह कुछ कहता, गाड़ी का दरवाजा खुला और मृत्युंजय बाहर निकल गया। संकल्प ने तुरंत उसका पीछा किया।
दोनों गाड़ी के आगे पहुँचे। वहाँ कुछ भी नहीं था…, बस गाड़ी की हेडलाइट टूटी हुई थी। संकल्प ने ड्राइवर को घूरते हुए पूछा, “लड़की कहाँ गई?”
ड्राइवर ने हड़बड़ाते हुए कहा, “पीछे गिर गई…, टक्कर लगते ही उछलकर पीछे चली गई।”
इसके बाद वह जल्दी से गाड़ी से उतरा और हाथ जोड़कर मृत्युंजय और संकल्प के पैरों में गिरते हुए बोला, “साहब, मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया! पता नहीं कहाँ से अचानक वो लड़की आ गई… माफ कर दो, साहब! माफ कर दो!”
मृत्युंजय ने ड्राइवर को नज़रअंदाज़ किया और सीधा गाड़ी के पीछे की ओर जाने लगा, जहाँ ड्राइवर ने बताया था कि लड़की टक्कर के बाद गिरी थी।
जैसे ही वह आगे बढ़ा, एक नन्हे बच्चे के रोने की आवाज़ गूँज उठी।
कौन थी वो लड़की, जिसके पीछे वे आदमी पड़े थे?
क्यों थे वे उसके पीछे?
आखिर किस तरह हुई थी आदत की मौत?
और ये नन्ही बच्ची कौन थी, जिसकी रोने की आवाज़ मृत्युंजय को सुनाई दे रही थी?
Write a comment ...